Tuesday, May 26, 2009

दूरिया प्रेम को और भी मीठा बना देती है

दूर रह कर भी तो हम दूर नही हो पाते अपने अतीत से...........हमेशा जुड़ा रहता है हम से हमारे साये की तरह ! और चाह कर भी हम उससे दूर नही हो पाते या यह कहु की होना ही नही चाहते बहुत अच्छा लगता है उनको याद करना ........... चाहे वो हमारे साथ नही होते पर दूर भी कहा हो पाते है.................. न हम..........न वो................ न उनकी यादें।
दूरिया प्रेम को और भी मीठा बना देती है! एक अलग सा भरोसा होने लगता है ...............उनपर जो हम से दूर होते है और वो भी तो जी भर कर याद करते ..............है और उनके दिल का धड़कन हम यह तक सुन पाते है...............एक खिचन से होती है जैसे कोई खीच रहा हो और दिल झूम उठता है !!!
चंचल मन अधीर होने लगता है उनसे मिलने को .........और तक़दीर की विवशता ये होती है की उनसे मिल नही सकते ...................!!!
फिर अपने दोनो आंख मूंद कर उनको अपने ही अन्दर पा लेने की मासूम से कोशिश कमाल के असर रखती है ...........फिर बस उनका दिदार कर नयन गंगा जमुना की तरह बह चलते है तप तप तप.............और बहते बहते चल पड़ते है अपने समंदर की और पहने अपने हो आँखों की दिवार तोड़ कर फ़ैल जाते है गालो पर और फ़िर होटो पर लग कर गर्दन से धीरे उतर कर खो जाते है मेरे दुपट्टे में.........उस पल ऐसा लगता है की आंखो ने एक नदी बनाई है और उम्मीद की नौका पर बैठ कर मन चल पड़ता है उस और जहाँ आंसू की नदी के पार वो मिलेंगे और फिर कोई कामना न शेष रह जायेगी ..........
एक पूर्णता की अनुभति होगी वहा ...............वहा पर कोई बंधन न होगा !!!!!..................बस एक ही पदार्थ सर्वत्र होगा .............................हमारा प्रेम कोमल फूल की तरह , शीतल, मचलता सा , या कहु ओस की बंद सा , सूरज की पहली किरण सा एक पूर्णता के अनुभव दिलाता हमारा प्रेम बस.................

17 comments:

Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality May 26, 2009 at 3:56 PM  

Ajib hai ye Prem,
kisi ke liye mrigtrishna,
to kisi ke liye hakikat hai ye prem|

Bhatke huye ke liye rasta,
to kisi ke liye uljhan hai ye prem|

apke liye ye "PREM" disha aur dasha
dono ka sambahak ho...yahi kamana hai...

निर्झर'नीर May 26, 2009 at 4:15 PM  

उस पल ऐसा लगता है की आंखो ने एक नदी बनाई है और उम्मीद की नौका पर बैठ कर मन चल पड़ता है उस और जहाँ आंसू की नदी के पार वो मिलेंगे और फिर कोई कामना न शेष रह जायेगी ..........

aapke bhaavon mein kahin na kahin har insan apne aapko dekhta hai

अनिल कान्त May 26, 2009 at 5:25 PM  

ye ishq ishq hai ...ishq ishq

achchha likha hai aapne

मीत May 26, 2009 at 5:27 PM  

आहा !!! इसे पढ़कर दिल में एक अजीब सा... मीठा-मीठा सा दर्द हो चला है...
बहुत प्रेमपूर्ण रचना....
अच्छी लगी...
आभार
मीत

alfaz May 27, 2009 at 3:46 PM  

आप की पंक्तियां पढ़ कर ऐसा लगा, इश्क की दास्ताँ हैं प्यारे, ज़रे-ज़रे में जान हैं प्यारे, कदम संभलकर रखियेगा, खुद से महरूम यह दिल हैं प्यारे .
keep writing!

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर May 28, 2009 at 7:30 AM  

dil se likha hamesha sundar or man bhavan hota hai. narayan narayan

admin May 28, 2009 at 3:06 PM  

प्रेम की इस अदा की भी अपनी भूमिका होती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

nawab May 29, 2009 at 11:13 AM  

धन्यवाद गार्गी आपके कमेन्ट के लिए मैंने आपका लेख पड़ा बहुत ही सुन्दरता से आपने पूरे लेख को बंधा है और विचारों को बहुत ही सहजता के साथ प्रस्तुत किया है
किसी ने सही लिखा है
ज़िन्दगी में मिलन के बाद जुदाई आई न होती
तो रिश्तों में इतनी गहराई आई न होती

बहुत सही लिखती रहियें

!!अक्षय-मन!! May 29, 2009 at 5:04 PM  

दूरियों में छिपा एक मीठा एहसास,किसी को याद करने का,उसका इंतज़ार करने का,हर वक़्त हर पल न जाने कैसे कट जाता है पता ही नहीं चलता......
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है.... शुभकामनाये

अक्षय-मन

Unknown May 29, 2009 at 10:12 PM  

कमाल कर दिया मैडम...ये बताइये फिर तो दूर रहकर ही मिठाई का आनंद लें तो ज्यादा अच्छा है....पैसा भी बचेगा

शरद कोकास May 30, 2009 at 1:36 AM  

गार्गी.. मुझे हंस मे प्रकाशित अपनी एक कविता याद आ गई "दूरियाँ" जिसकी पंक्ति है..हम आपस में बातें नही करते/दीवारों से कहते हैं. बहरहाल.तुम्हारी अभिव्यक्ति अच्छी लगी.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) May 30, 2009 at 9:28 AM  

gaargi ji,haan bilkul sahi aur behatar kahaa aapne....!!

abhishek anand May 30, 2009 at 11:43 PM  

इस ब्लाग के लिये शुभकामनाएं.बहुत अच्छा लगा पढ़कर.बीटल्स की वो पंचलाइन याद आ गई.love is all you need, all you need is love.और मेरा ब्लॉग ज्वाइन करने के लिये शुक्रिया.
अभिषेक

vijay kumar sappatti June 9, 2009 at 4:55 PM  

aapki ye post ....man ko choo gayi ...

प्रशांत मलिक July 5, 2009 at 8:15 PM  

kafi acha likhti hain aap....
thanks for sharing...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) July 11, 2009 at 9:23 PM  

वहा पर कोई बंधन न होगा !!!!!..................बस एक ही पदार्थ सर्वत्र होगा .............................हमारा प्रेम कोमल फूल की तरह , शीतल, मचलता सा , या कहु ओस की बंद सा , सूरज की पहली किरण सा एक पूर्णता के अनुभव दिलाता हमारा प्रेम बस.................




waaqai mein dooriyan pyar ko aur meetah bana deti hai....... ati sundar........ aur bhaavpurn........



Regards

shama July 14, 2009 at 7:11 PM  

Kayi baar dooriyan,pyar bhula bhee detee hain..yebhee dekha hai..'drushtee ke pare srushtee',ye kahawat sunee hai? Maine ise marathi bhashase hindi me anuwadit kiya hai..

Lekin,aapki harek rachna,komal,anoothi aur saral seedhee hai..kaafee dertak padhtee rahee..

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