दूरिया प्रेम को और भी मीठा बना देती है
दूर रह कर भी तो हम दूर नही हो पाते अपने अतीत से...........हमेशा जुड़ा रहता है हम से हमारे साये की तरह ! और चाह कर भी हम उससे दूर नही हो पाते या यह कहु की होना ही नही चाहते बहुत अच्छा लगता है उनको याद करना ........... चाहे वो हमारे साथ नही होते पर दूर भी कहा हो पाते है.................. न हम..........न वो................ न उनकी यादें।
दूरिया प्रेम को और भी मीठा बना देती है! एक अलग सा भरोसा होने लगता है ...............उनपर जो हम से दूर होते है और वो भी तो जी भर कर याद करते ..............है और उनके दिल का धड़कन हम यह तक सुन पाते है...............एक खिचन से होती है जैसे कोई खीच रहा हो और दिल झूम उठता है !!!
चंचल मन अधीर होने लगता है उनसे मिलने को .........और तक़दीर की विवशता ये होती है की उनसे मिल नही सकते ...................!!!
फिर अपने दोनो आंख मूंद कर उनको अपने ही अन्दर पा लेने की मासूम से कोशिश कमाल के असर रखती है ...........फिर बस उनका दिदार कर नयन गंगा जमुना की तरह बह चलते है तप तप तप.............और बहते बहते चल पड़ते है अपने समंदर की और पहने अपने हो आँखों की दिवार तोड़ कर फ़ैल जाते है गालो पर और फ़िर होटो पर लग कर गर्दन से धीरे उतर कर खो जाते है मेरे दुपट्टे में.........उस पल ऐसा लगता है की आंखो ने एक नदी बनाई है और उम्मीद की नौका पर बैठ कर मन चल पड़ता है उस और जहाँ आंसू की नदी के पार वो मिलेंगे और फिर कोई कामना न शेष रह जायेगी ..........
एक पूर्णता की अनुभति होगी वहा ...............वहा पर कोई बंधन न होगा !!!!!..................बस एक ही पदार्थ सर्वत्र होगा .............................हमारा प्रेम कोमल फूल की तरह , शीतल, मचलता सा , या कहु ओस की बंद सा , सूरज की पहली किरण सा एक पूर्णता के अनुभव दिलाता हमारा प्रेम बस.................
दूरिया प्रेम को और भी मीठा बना देती है! एक अलग सा भरोसा होने लगता है ...............उनपर जो हम से दूर होते है और वो भी तो जी भर कर याद करते ..............है और उनके दिल का धड़कन हम यह तक सुन पाते है...............एक खिचन से होती है जैसे कोई खीच रहा हो और दिल झूम उठता है !!!
चंचल मन अधीर होने लगता है उनसे मिलने को .........और तक़दीर की विवशता ये होती है की उनसे मिल नही सकते ...................!!!
फिर अपने दोनो आंख मूंद कर उनको अपने ही अन्दर पा लेने की मासूम से कोशिश कमाल के असर रखती है ...........फिर बस उनका दिदार कर नयन गंगा जमुना की तरह बह चलते है तप तप तप.............और बहते बहते चल पड़ते है अपने समंदर की और पहने अपने हो आँखों की दिवार तोड़ कर फ़ैल जाते है गालो पर और फ़िर होटो पर लग कर गर्दन से धीरे उतर कर खो जाते है मेरे दुपट्टे में.........उस पल ऐसा लगता है की आंखो ने एक नदी बनाई है और उम्मीद की नौका पर बैठ कर मन चल पड़ता है उस और जहाँ आंसू की नदी के पार वो मिलेंगे और फिर कोई कामना न शेष रह जायेगी ..........
एक पूर्णता की अनुभति होगी वहा ...............वहा पर कोई बंधन न होगा !!!!!..................बस एक ही पदार्थ सर्वत्र होगा .............................हमारा प्रेम कोमल फूल की तरह , शीतल, मचलता सा , या कहु ओस की बंद सा , सूरज की पहली किरण सा एक पूर्णता के अनुभव दिलाता हमारा प्रेम बस.................