अकेला आया है तू , अकेला ही जायगा .........!!!
ज़िन्दगी भी नये नये रूप दिखती है ...........रिश्ते अपने होते है ......... कब हाथ से छूट जाते है पता ही नही चलता........और हम साधारण मानव ईश्वर की इस लीला को समझ ही नही पाते कि ............यहाँ कुछ भी हमारा नही है यह तक कि हम खुद भी...............ये संसार तो नश्वर है । सब कुछ ही नश्वब है.............पर हम ये भूल जाते है और छोटी-छोटी चीजो को अपनी ज़िन्दगी समझने लगते है................ऐसा लगता है की उन में ही हमारी आत्मा बसती हो...........ये मेरा है..........वो मेरा है ...............मैं उसके बिना नही जी सकती..............ये पापा ......वो मम्मी ............मेरा भाई........मेरे बहन ...............ये मेरा पति ..........ये मेरे ज़िन्दगी ............ये मेरा प्यार .............ये मेरा दुश्मन ............सब से कितने जुड़े रहते है हम.......और एक दिन जब वो कह दे कि बस हमारा साथ यही तक था और हाथ छोड़ दे .........और फिर हमारा सोचना ............अगर वो न हुआ तो ज़िन्दगी में कुछ भी बाँकी नही रहा .........उसके बिना ज़िन्दगी रुक सी गई है । पागलो की तरह हर रिश्ते को अपनी इन नाजुक मुठ्ठियों में बांधने की नाकाम सी कोशिश में लगे रहते है और भूल जाते है की इस जीवन में कुछ भी हमारी मर्जी से नही होता........हम तो बस एक अच्छे कलाकार की भांति अपना रोल पूरा करते है .........
कल मेरे पीछे मेरा बचपन छूट गया , अहसास भी न हुआ फिर मेरा गाँव,फ़िर वो टॉफी , लोलीपोप , गुडिया , खिलोने , बचपन के दोस्त , मस्ती , मज़ा , छोटी -छोटी बात पर लड़ना-झाड़ना , सब कुछ ही छूट गया .......और बचपन की वो मासूमियत भी तो कही छूट गई और अहसास भी नही हुआ ...... फ़िर स्कूल , कॉलेज भी छूट गया ....सब टीचर , दोस्त -यार भी........ बस यादो तक ही रह गये और साल-साल कर के सब कुछ छूटता गया और फिर रह गई हमारे पास कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादें........
कभी कभी लगता है कि मैं किसी टूर पर हूँ ......!! और जगह-जगह रुक कर हर पल को जी रही हूँ । फिर आगे निकल जाना है और सब कुछ यही पीछे रह जायगा ........एक जर्रा भी मेरे साथ नही चलेगा सब कुछ ही .........जो हम चाहते है पीछे रह जाये वो भी ...........और वो भी जो हम अपने साथ रखना चाहते है......पर भारी आंखो से भी उसे हमें पीछे छोड़ना होता है क्योकि जीवन गतिमान है और इसे तो बस चलना ही आता है.............और जब ये नही रुकता तो हम कैसे रुक सकते है ...................
चाहे जितना भी रोलो पर जो जाना है उसे हम मर कर भी नही रोक सकते..............जो हमारा नही है अगर उसे ताला लगा कर भी बंद रखो तो वो भी चला ही जायगा ...................जीना तो हर हाल में पड़ता है और एक समय ऐसा भी आता है की सारे रिश्ते नाते छूट जाते है एक ही पल में .................
पर फिर भी अपने अकलेपन से लड़ते हुए हमे जीना पड़ता है .............आगे बढ़ना पड़ता है ...................चाहे पाँव में कितने भी छाले क्यो न हो..................चाहे भावनायें छलनी हो जाये जीना तो पड़ता है.................क्योकि यही तो है जिन्दगी..............जहाँ मर कर भी चलना होता है जो किसी के लिये नही रुकती..............
चाहो तब भी नही...............और न चाहो तब भी नही .......................और पता नही कब हम इतनी दूर निकल आते है की जब हम पीछे मुड कर देखते है तो बस एक धुन्धला सा साया ही नज़र आता है और धीरे धीरे वो भी काल चक्र में कही लुप्त हो जाता है .........................
पर कितने कमाल की बात है सब कुछ छूट जाता है पर ये दुर्भाग्य नही छूटता .........ये दर्द, आंसू , प्रेम, यादें, खालीपन, हमारा साथ नही छोड़ता..................संग चलती रहते है बिना रुक जीवन की तरह ......................कभी कभी लगता है जब सब का साथ छूट जाना है तो ये भी हमारा साथ क्यो नही छोड़ देते .................
**********
जो भी है पास में ...
यही रह जायेगा।
मेरा मेरा करता हुआ...
एक दिन तू भी मर जायगा ।
लूट लेगा कोई तुझ से तेरे ख़ुशी .....
आंख धोता हुआ तू ही रह जायगा ।
चाहोगे रोकना वो रुकेगा नहीं ......
वक़्त की आरी से सब कुछ कट जायगा ।
इस दुनिया की बस रीत है यही ......
अकेला आया है तू , अकेला ही जायगा ।
अकेला आया है तू , अकेला ही जायगा ।
35 comments:
सच्चाई से रु-ब-रु कराती शानदार रचना।
bahut accha gargi, dil ko chu jati hai tumahari kalam ..tumhe aur tumahari kalam ko salam..
-----eksacchai.{AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
सुन्दर शब्दों से सजी-सँवरी
इस पोस्ट के लिए बधाई।
वाह गार्गी जी जीवन की सच्चाई को शब्दों के माध्यम से बहुत अच्छा प्रस्तुत किया है... आपने....
सच ही तो है दुःख-दर्द के आलावा साथ क्या रह जाता है...
सुख है एक छाँव ढलती आती है जाती है... दुःख तो अपना साथी है...
मीत
जो भी आप कहीं है बो सत्य है भी और नहीं भी...
निर्भर करता है कि हम कहाँ हैं...सापेक्षिक है....
हमें इन सब से परे होना है..न मिलने कि ख़ुशी हो और न बिछुड़ने का गम ...
...........सम-भाव के साथ ............
nice falsafa, congrates...
ek pahla aur aakhiri sach to yahi hai jo is lekh mein kaha gaya
badhiya rachna
गार्गी जी बहुत ही सुन्दर जीवन की अहम् सच्चाई को आप ने इतने साधारण तरीके से और दिल को छूते हुए लिखा है
अद्भुद है
Rrgards
•▬●๋•pŕávểểń کhừklá●๋•▬•
9971969084
9211144086
I will again say thaxs for this true and touchy article written by Ms Gargi....she always put her pen and scribbled lots of real experiances and real facts of life on the e-paper.....
She always comes with a new experiance of life .....
May God Bless Her In Her Future !!
क्या बात है. इस रचना से तो तुमने सभी पल को जीने का वर्णन बखूबी किया है.
इस अंजुमन से जीवन की तस्वीर दिखाई पड़ती हैं.
इसका टाइटल बहुत ही सटीक रखा है.
बेमिसाल रचना.
aapki kavita ne man ko chhoo liya.
GARGI, BAHUT ACHCHA LIKHA HAI, SACHCHAI BAYAN KI HAI, YE HUN SAB JAANTE HUE BHI NAHIN JANNA CHAHTE,YAHI TO MAYA HAI,..........KHAIR PICHHLE KUCHH DINON SE JAB SE MERE FATHER EXPIRE HUE HAIN BILKUL AISE HI VICHARON MEN DOOBA HUN , VAIRAGYA KI BHAVNA GHAR KAR GAI HAI, LEKIN WAHI JAISA TUMNE LIKHA HAI HAR HAAL MEN JEENA PADTA HAI. BAHUT BAHUT SADHUWAAD.
हम्म्म्म्म्म्म्म.....ये गार्गी को क्या हो गया भई....??....ये तो ऐसी ना थी....!!....अब मैं देखता हूँ तो क्या देखता हूँ,कि मैं एक गीत हुआ गार्गी के बाल सहला रहा हूँ.....और उसे बस इक चवन्नी भर मुस्कुराने को कह रहा हूँ.....
".....पगली है क्या....हंस दे ज़रा....!! ".....जीवन है ऐसा.....गम को भूला....!!
......लोगों का क्या....ना हों तो क्या...!! .....गुमसुम है क्यूँ....सब कुछ भुला...!! .....जीवन है सपना....बाहर आ जा....!! ....चीज़ों का क्या....सब कुछ मिटता....!! ....खुद में गुम जा....खुद ही है खुदा...!! ....तुझे ए गार्गी....जीना समझा....!! ...रू-ब-रू है"गाफिल"....हाथ तो मिला..!! ओ गार्गी.....तेरे पिछले आर्टिकल में भी ऐसे ही विचारों की पदचाप मुझे सुनाई दी थी....मैंने मटिया दिया....किन्तु इस बार तूने आवाज़ देकर मुझे बुला ही लिया तो बताये देता हूँ....लेकिन मैं तुझे बताऊँ....तो क्या बताऊँ भला.....तेरे खुद के शब्दों में तो खुद ही किसी गहराई की खनक है....तू खुद जीवन के समस्त आयामों को समझती है... सच कहूँ तो जीवन में आने वाले तमाम दुःख हमें इक अविश्वसनीय गहराई प्रदान कर जाते हैं....और आगे आने वाली अन्य परिस्थितियों का और भी गहनता से मुकाबला करने के लिए....या कि उनका और और भी मुहं तोड़ जवाब देने के लिए....याकि जीवन बिलकुल ऐसा ही है....बिलकुल इक सपाट परदे-सा....तस्वीरों-सी घटनाएं आ रही हैं...और जा रही हैं....कोई भी चीज़ दरअसल अपनी नहीं हैं...यहाँ तक कि प्रेम भी नहीं....जिसको आप गहराई का सबसे विराट पैमाना समझते हो....और औरों को भी समझाते हो...!!....दरअसल सच कहूँ....तो इस विराटतम काल में इक मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम घटनाएं कुछ हैं ही नहीं.....तो दरअसल कुछ है ही कहाँ...चीज़-चीज़ें-घटनाएं-आदमी या कुछ भी दृश्य का साकार होना....दरअसल है ही नहीं....!!और जब हम इसे देख पाते हैं....तब यह हमको चीज़ों-घटनाओं-मानवों को समझने का तमाम भ्रम मिट जाता है....और रह जाता है....सिर्फ-व्-सिर्फ अहम् ब्रहमास्मि का भाव मात्र.....!!....दरअसल अनंत काल में तमाम चीज़ों का होना और ना होना बराबर ही है...सोचो ना कभी....कि अरबों-खरबों (काल की इक छोटी-सी गणना) में हमारे ६०-७० वर्ष के जीवन का होना....!!....हा..हा...हा...हा...हा...कितना अहम् हैं इस आदमी-नुमा जीव का....(आदमी-नुमा इसलिए कह रहा हूँ....कि मैं आदमी को आदमी तक नहीं मानता.....क्योंकि ब्रहमांड में तमाम चीज़ें अपनी नैसर्गिकता के साथ हैं....सिर्फ और सिर्फ आदमी नामक यह जीव[ये नाम भी तो इसका खुद का दिया हुआ है]अ-नैसर्गिक है.....कृत्रिम....अहंकारी....अविवेकी[और खुद को विवेकशीलता का तमगा पहनाये हुए है....??लम्पट कहीं का....!!].....तो खुद के ज़रा-से जीवन को इतना गौरव-पूर्ण मानने वाला यह जीव....सचमुच मेरी नज़र में बड़ा ही अद्भुत है....!!....किसी भी बात से जिसका तर्क सहमत नहीं होता....किसी भी "चीज़"से जिसका ""....जी.....""नहीं भरता....!!.... क्या ऐसा कोई अन्य जीव इस पृथ्वी पर....??....गार्गी....जैसा कि हम जानते हैं....कोई भी चीज़ अपनी नहीं है....और यह भी कि सब कुछ क्षणभंगुर है...तो फिर सब बात तो यही समाप्त है....और इनसे जुड़े हुए विचार भी तब व्यर्थ ही हैं....विचार भी दरअसल हमारी अपनी कल्पना ही होते हैं,.....!!...इसका अर्थ यह भी तो नहीं कि जीवन ही व्यर्थ है....नहीं जीवन का केवल उतना ही अर्थ है....जितना कि हमारे शब्दों के अर्थ....!!.....अलबत्ता यह अवश्य हो कि जीवन की इस क्षण-भंगुरता को देखते हुए.....आदमी नाम के इस स्वनामधन्य जीव में कम-से-कम जीवन के प्रति इतनी तो तमीज हो.....कि वह ब्रहमांड की सारी चीज़ों,चाहे वो निर्जीव हों या सजीव,के प्रति तमीज दिखा सके....सबका सम्मान करना सीख सके....और इस बहाने अपनी नश्वरता का सम्मान भी कर सके....!!!!
बेहद सुन्दर. यही तो जीवन दर्शन है. जिसने इसे समझ लिया समझो वह तर गया. आभार.
गार्गी जी जीवन की उथल पुथल में डूब कर आप ने जो लिखा है द्भुद है मेरे पास शब्द नहीं है की मै आप की किस तरह तारीफ़ करूँ बस बहुत दिन पहले लिखी गयी अपनी एक कविता मै आप को समर्पित करना चाहता हूँ
इतना नहीं सरल ,,,,
ये बड़ा तिक्ष्न गरल ,
सुधामयगर पान करना है ,,,,
सत्य का ज्ञान करना है
द्वैत की छोड़ आद्वेत को बांध ,,
एकीकार होकर,,,,,,,,,,,
अन्यन्यता खोकर ,,,,,
सुधा मय से मुह मोड़ ले ॥
मय स्रस्ति दामन छोड़ ले ,,,
बन जा स्रस्ति का भर्ता,,,,
बन जा जग का कर्ता,,,,,,
मिटेगा क्रंदन ,,,,,,,,
होगा नूतन ,,,,,,
यही है जीवन,,,,,,
गर यह ज्ञान हो गया ,,,
अभिमान खो गया,,,,
मिलेगा सुख,,,,
होगा न दुःख...
मिटेगी अंतस वेदना ,,,
मिलेगी सत्य चेतना ,,,,
जव सत्य का आरम्भ होगा ।
तभी जीवन प्रारम्भ होगा ,,,
सत्य ज्योति जगा दो....
भ्रान्ति सब मिटा दो,,,
पाप धो कर,,,
निज आस्तित्व खोकर/
करो साधना....
जिसे करते है कुछ विरल॥
इतना नहीं सरल,,,
ये बड़ा तिक्ष्न गरल ,,,,,,,,,,,,,
Priy mitr gargi,
Apni sanatan sanskrity main naam se vyakti kay swbhavik gunon ka pata chalta hai yadi ve kal gadna ki drishti say rakhey gaye hain. Apka nam GARGI kay vidushi-pan ko apke samvedansheelta aur lekan ko charitharth karta hai.
aaj blog par mainey ek vichar aur kavita post ki hai.
kaise lagi likhiyrga.shayad kahin koi kami poori kar sake.
ajay
drajaykgupta
Dear Gargi, aapka blog "akela aaya hai tu, akela hi jayega" padha.. Bahut achha laga. saare lekh ka saaransh lekh ke sheershak se hi spasht ho jaata hai. main aapki baat se sehmat to hu kintu agar hum log is dunia ko maaya maan le aur is se apne aap ko poori tarah alag kar le to hum log sanyaasi hi jayenge. Mera maan na hai ki hame is jeevan ke pratyek kshan ko poori tarah jeena chahiye aur jis samay jo hamare kartavya hai unhe poori nishtha se poora karna chahiye.. ek aur baat hai, hame jeevan se kam se kam apekshaye karna chahiya, agar hum aisa karne main kaamyaab rahe to hum hamesha prasann rahenge.. main kai varsho se aisa karne ki koshish kar raha hu par abhi tak safalta nahi mili.. waiting eagerly for your next writing... Neo.
hi gargi....
read what u have written...बहुत सही लिखा है...हमारे हाथ में कुछ नहीं है...खाली हाथ आये हैं, खाली हाथ जाना है..बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है...well done keep it up...!
जीने विभिन्न आयामों से और तरीकों से विविधतापूर्ण सच का सामना अच्छा लगा। ऐसे विषयों को लिखना एक प्रशंसनीय उपलब्धि है।
gargi tmhara lekh bht bht bht achha hai.jitni b tareef karo kam hai.......tmne apne sabdo k madhhyam se jeevan k satya ko bht salta se prastut kiya hai.tmhare ye lekh dil ko chhu lene wala hai.bas itna he kehna chahti hu k ye bht he sundar rachna hai
Gargi ji
shabdon ka sateek prayog aur sundar lekhan shaili..
bhavpravan likha hai aapne
aur kavita ka pravah aur uski samyikta samast lekh ko sundar aadhar pradaan karti hai
sundar lekh ke liye badhaai sweekaren
jeevan-darshan kaa vaastvik evam sundar nirupan
jeevan-darshan kaa vaastvik evam sundar nirupan
very nice
सच्चाई की तस्वीर है जो आम इंसान नहीं समझ पाता है यही तो रीत है दुनिया की अकेला आया है तू , अकेला जाता है ..........बहुत गहराई तक सोचकर लिखा है आपके साथ शायद कोई घटना हुई है जो शायद 'वेदना' बनकर उभरी है
सच्चाई की तस्वीर है जो आम इंसान नहीं समझ पाता है यही तो रीत है दुनिया की अकेला आया है तू , अकेला जाता है ..........बहुत गहराई तक सोचकर लिखा है आपके साथ शायद कोई घटना हुई है जो शायद 'वेदना' बनकर उभरी है
bahut hi accha aur saccha likha hai apne and that too in very simple words.........
Gargi aapke lekh mein jeevan ki itni gahri baat dekh kar achambhit rah gayi
bahut achha laga aapko padhna
यही जीवन का परम सत्य है।
{ Treasurer-S, T }
Gargi...... aapne life ki reality depict ki hai....... lekh to bahut hi achcha...... with essence of spirituality.......
अकेला आया है तू , अकेला ही जायगा ।
अकेला आया है तू , अकेला ही जायगा
is the universal truth..... revealed explicitly....
Do keep writing.......
A++++++++
हरि ओम,
आपने बहुत अच्छा लीखा है।
"पर कितने कमाल की बात है सब कुछ छूट जाता है पर ये दुर्भाग्य नही छूटता .........ये दर्द, आंसू , प्रेम, यादें, खालीपन, हमारा साथ नही छोड़ता......."
उपरोक्त समस्या का हल वेदान्त ज्ञान प्रदान करता है। हम अज्ञान के कारण दुखः का जीवन जी रहे है। ज्ञान हमे सम्पूर्णता की ओर ले जाता है। जहाँ कोई दुख नहीं सीर्फ सुख ही सुख है।
प्रेम और ओम।
आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.............
बेहतरीन..... वाह....
sundar sabdo se saji aap ki yee rachna bahot ki lajawab hai,jindagi ki hakikat ko bayan karti hai aap ki rachana,bahot sahi kaha aap ne ki agar jivan me sukh aur dukh na ho to jina kaisa,koyo ki jina to isi ka naam hai
Very Nice ....
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